Friday, 1 February 2013

~ Jab Mile Nahi Alfaaz Kabhi ~

जब मिले नहीं अल्फ़ाज़ कभी,
तड़प तड़प के रह जाऊँ,
सूनेपन के आलम मे ,
जाने क्या क्या कह जाऊँ,
ये लिख डाला किसके लिए ,
क्या मतलब है क्या है बात ?
खुद को कैसे मै समझाऊँ,
कुछ समझो तुम तो समझा देना,
खता हुई जो बतला देना,
मै अनजान मुसाफिर बस ऐसे ही
चलता जाऊँ,
करता जाऊँ खुद से ना जाने
कितनी बातें,
बात बात पर नए तराने....,
गीत कोई बनाऊँ,
जब नहीं मिले अल्फ़ाज़ कोई,
सिसक सिसक के रह जाऊँ,
रो रो कर....,
चलते हांथ मगर,
दिल का दर्द मै फरमाऊँ,
कभी डरूँ इस दुनिया से
और कभी न घबराऊँ,
तोड़ उम्र के सारे बंधन ,
मै सूली पर चढ़ जाऊँ,
फैलूँ कभी रोशनी बन,
जब मिले नहीं अल्फ़ाज़ कभी ,
सिमट सिमट के रह जाऊँ,
बस होता है वो पन्ना एक
जिसमे दिल को लिख जाऊँ,
बात है मेरी नज़र तुम्हारी ,
तुम सबसे वो पढ़वाऊँ,
यही है मेरी दुनिया एक ,
जब मिले नहीं अल्फ़ाज़ कभी,
जाने क्या क्या कह जाऊँ,
मै तड़प तड़प के रह जाऊँ ....:))*

~ Prasneet Yadav ~

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