अपना क्या बेगाना क्या
रात है तन्हाई भी
मै अकेला तो नहीं है कई सारे ख्याल साथ
और भी ,
जो मुझसे बातें करते हैकमबख्त सोने भी नहीं देते
मुझसे सवाल करते है
इस तन्हाई में कितना सुकूं है
और झुंझलाहट भी ,
यादों के धागे आकस्मात खुल
पड़ते है ,
पतंगे उड़ चलती हैं आसमान
में ,
गगन के छोर तक
मै अकेला थामे डोर
उड़ाता फिरता रात में
मेरी उड़ती पतंग मुस्कुराती हुई
पास कभी दूर जाती हुई ,
एकाएक फिर सिमट जाती है डोर
कब आ जाती है मुझे नींद,
कब ख्यालों से बाहर निकल
आता मै ....:))*
~ प्रस्नीत यादव ~
कब ख्यालों से बाहर निकल
आता मै ....:))*
~ प्रस्नीत यादव ~
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