Wednesday, 5 December 2012

रात है तन्हाई भी

 अपना क्या बेगाना क्या 
रात है तन्हाई भी 
मै अकेला तो नहीं 
है  कई सारे ख्याल साथ
और भी ,
जो  मुझसे  बातें  करते  है
कमबख्त  सोने भी  नहीं  देते
मुझसे  सवाल करते  है
इस  तन्हाई  में  कितना  सुकूं  है
और झुंझलाहट  भी ,
यादों  के  धागे  आकस्मात  खुल
पड़ते  है ,
पतंगे  उड़ चलती  हैं  आसमान
में  ,
गगन  के  छोर  तक
मै  अकेला  थामे  डोर
उड़ाता  फिरता  रात  में 

मेरी  उड़ती पतंग  मुस्कुराती हुई 
पास कभी दूर जाती हुई ,
एकाएक  फिर  सिमट  जाती  है  डोर 
कब  आ जाती  है  मुझे  नींद,
कब  ख्यालों  से बाहर  निकल
आता  मै ....:))*

~ प्रस्नीत  यादव  ~


 

No comments:

Post a Comment