Thursday, 30 October 2014

सर्दियों का मौसम मेरे लिए होता है खास और आपके लिए ??

सर्दियों का मौसम मेरे लिए होता है खास और आपके लिए ??



सर्दियों  का मौसम आते ही मन कहीं दूर निकल जाता है। वहां जहाँ से मैं होकर आया। अपने बचपन अपने स्कूल के दिनों की वो सर्दियाँ आज भी ख़ास हैं। वो चाय की चुस्कियां वो अलाव के पास बैठकर भुनी मूंगफली के दाने खाना। वो उन दिनों आलू द पराठे वो ब्रेड मक्खन की ताजगी , वो रात में हैलोजन की रोशनी में बैडमिंटन की तड़ातड़ कितना कुछ हो जाता है कहने को जब सर्दियाँ आती हैं। ठंडी हवाएँ सब कुछ बहा ले आती हैं अपने साथ। वो बल्ला जो उठता था तब तक उठा रहता था जब तक घर से बुलावा नहीं आता था उस पर भी हम अनसुना कर देते थे। वो मेरी जर्क बाल ज़रा कालर ऊपर कर लूँ फिर लिखता हूँ।  वो संडे स्पेशल होता था आम दिनों से बिल्कुल अलग। रजाई की गरमाहट के साथ सुबह की रंगोली से लेकर शक्तिमान तक फिर शाम की दूरदर्शन की वो फिल्म खींच ले जाते हैं ये सारे लम्हे मुझे अपनी तरफ। खेलकूद और मस्ती के बीच स्कूल के लाजवाब दिन। स्कूल डेज बड़े प्यारे थे। स्कूल के वो सारे दोस्त वो टीचर सब कुछ याद है। हाँ टेबल याद करने में ज़रा लूज था हर शुक्रवार के वो श्रीवास्तव सर के डंडे सर्दियों में जब हथेली पर पड़ते थे उस पल मैं सिहर उठता था।  मगर डंडे खाना टेबल याद करने से ज्यादा आसान समझता था। टेबल याद करने के मामले ढीठ था। कड़ाके की सर्दियों में जब पारा शून्य हो जाता था छुट्टी हो जाती थी कई दिनों तक स्कूल बंद हो जाते थे मानो पंख लग जाते थे। ऐसे में ज्यादा वक़्त किताबों से दूर खेलकूद और कुछ क्रिएटिव करने में ज्यादा बीतता था। उन दिनों शतरंज का भी चस्का हुआ करता था। फिर छुट्टियां ख़त्म होते ही थोड़ा मायूस से हो जाते थे।










सर्दियों का मौसम खुशनुमा रंगीन होता था। गुनगुनी धूप सेंकना बहुत अच्छा लगता होगा आपको भी। उस पर किसी आउटडोर गेम का माहौल बन जाए तो और भी मज़ा आता है। मगर वो सेफ होना चाहिए  कोई पार्क हो पास में तो बेहतर है, नहीं है गली या सड़क सुरक्षित हों कोई नुकसान न हो तो ही खेलें। क्युकी खेलने से कहीं ज्यादा सेफ रहना जरूरी है। इसलिए खेलने के लिए जगह हमारे अनुकूल होनी चाहिए। ताकि हम खुद को तरोताज़ा रख सकें जिससे इन स्पेशल दिनों को और भी स्पेशल बनाया जा सके। अगर खेलना पसंद नहीं है, आपके आस पास अच्छे दोस्त नहीं है या फिर जगह नहीं है तो भी कोई बात नहीं, आप कुछ क्रिएटिव कर सकते हैं। नए साल पर तैयारी के लिए अपने हाथों ग्रीटिंग बना सकते हैं। पेंटिंग भी कर सकते हैं , कुछ नया कर सकते हैं या फिर कहानी कविता डायरी या जो पसंद है वो लिख सकते हैं। अपनी पसंदीदा डिश बना सकते हैं कुछ नहीं तो अपनी पसंदीदा डिश बनवा सकते हैं। अगर आपने कभी मक्के बाजरे और बेसन की रोटी नहीं खायी तो जरूर खाए। सर्दियों का स्वाद दोगुना हो जाएगा। कहीं घूमने जा सकते हैं दोस्तों के साथ फैमिली के साथ।

सर्दियों का मौसम गर्म और रंगीन कपड़ों के लिए भी बहुत खास है। स्वेटर बुनने का प्रचलन भले ही आज कम हो गया हो मगर फिर भी ये पूरी तरह से बंद नहीं हुआ। बचपन में मैं और भाई मम्मा के हाथों के बुने स्वेटर पहनते थे जिसे वो बड़ी मेहनत से बनाती थीं। हर फंदे में सर्दियों की मिठास होती थी। ऊन के फंदों को जोड़ने का ये दिलचस्प खेल भी बड़ा सुकून देता था जब मम्मा और उनकी दो-चार सहेलियां बैठकर स्वेटर बुनती थीं उनके चेहरे पर मुस्कान झलकती थी और जल्दी से जल्दी स्वेटर पूरी करने की होड़ सी लगी होती थी। आज भले ही हम खरीदे हुए स्वेटर पहनना पसंद करते हों। मगर वो बचपन की स्वेटर हमारी खास हुआ करती थी। आप सबके पास भी होगी जरूर। इन रंगीन ऊनो से आप जो चाहे वो बना लो ये भी एक हुनर है। ये नहीं करना तो कोई बात नहीं अपने पॉकेट मनी के हिसाब से गर्म कपड़ों की खरीददारी करना भी मन को ख़ुशी देता है ये इन सर्दियों में आपको कलरफुल रखेंगे।  हाँ अपने आस पास जरुरतमंदों को अपने पुराने गर्म कपड़े देंगे तो सर्दियों में उन्हें भी तकलीफ नहीं होगी उनकी सर्दियाँ भी अच्छी व्यतीत होंगी। आपको भी अच्छा लगेगा।


सर्दियों में ही शुरू होता है हम सबका चहेता नया साल। पुराना साल कुछ मीठी खट्टी यादों के साथ हम सबसे जुदा हो जाता है हमेशा के लिए और ढेर सारी यादें दे जाता है। नया साल नए उम्मीद की तरह आता है। नए साल की वो नयी सुबह स्पेशल सी होती है आज भी। कुछ खास तैयारियां हम करते हैं। मोबाइल, फेसबुक, वॉट्सऐप या मेल के जरिये भले ही हम आज शुभकामनाएं देते हों मगर वो ग्रीटिंग का सुनहरा दौर जब याद करते हैं तो उस अनोखे कार्ड की महक आज भी साँसों में घुल जाती है। बड़ी मेहनत करते थे हम उसमे ऐसे ही वो ख़ास नहीं है। बहुत सोंचकर लिखना पड़ता था। उन रंगीन कार्डों के साथ हमारे पल रंगीन हो जाते थे और सर्दियाँ गुलाबी। दिल की बातों को कार्ड पर लिखना या शेर -ओ-शायरी लिखकर किसी को भेंट करना अच्छा लगता था। नए साल को सेलीब्रेट करने का सबका तरीका अलग अलग जरूर होता है मगर ख़ुशी एक होती है। आप सबके जीवन में ये सर्दियां आलस्य दूर भगाए मौसम खुशनुमा बनाएं आप सर्दियों का भरपूर लुत्फ़ उठाये तंदरुस्त रहें और हाँ एक ग्रीटिंग जरूर बनाये अपने लिए ही सही या खरीद कर लाएं। हो सके तो महिलाये थोड़ा वक़्त निकालकर अपने बच्चों के लिए फ्रॉक ,हाइनेक ,कैप कुछ भी बनाएं। सर्दियाँ यादगार खुशनुमा हो जाएंगी। और हाँ एक बार फिर लिख रहा हूँ जरुरतमंदों को अपने पुराने गर्म कपड़े देंगे तो सर्दियों में उन्हें भी तकलीफ नहीं होगी उनकी सर्दियाँ भी अच्छी व्यतीत होंगी। आपको भी अच्छा लगेगा। जय हिन्द।  

~ प्रसनीत यादव ~
१०/३१/१४











   

Friday, 6 June 2014

बात बेबात पर/06-06-14

अब न कोई आस अधूरी होगी
न प्यास अधूरी होगी
खुदा ने चाहा इच्छा जरूर
पूरी होगी <3

~ प्रसनीत ~
०६/०२/१४

कितने ही सवालों का जवाब हूँ मैं
हूँ शोला कोई या आफ़ताब हूँ मैं
गिनती क्या करते हो मेरे वज़ूद की
तुम्हारी दुनिया में बेहिसाब हूँ मैं
तिनका ही समझो तुम्हारी मर्ज़ी
नहीं पता अच्छा या खराब हूँ मैं
जानता नहीं कुछ बस इतना पता है
तुम्हारे अँधेरे रास्तों का चिराग हूँ मैं।

~ प्रसनीत यादव ~
०६/०५/१४

हम हवाओं में पतंगों को छोड़ दिया करते हैं
नाज़ुक रिश्तों के धागों को तोड़ दिया करते हैं
गीत कभी लिखते हैं ग़ज़ल कभी कहते हैं
यूँ शब्दों से टूटे हुए को जोड़ दिया करते हैं
दिल के आशियाने में प्यार का जहाँ बना
हम रिश्तों में मिठास घोल दिया करते हैं
कोई न रह जाए तन्हा हमारी परछाई में
हम गैरों को भी बड़ा मोल दिया करते हैं
कितनी ही तलाश कर लो अधूरा रहता है कुछ
हम खुली किताब सा दिल खोल दिया करते हैं।
मीठी मीठी बातों से किसी को क्या लुभाना
जो दिल में आये साफ़ बोल दिया करते हैं।

~ प्रसनीत यादव ~
०६/०५/१४

आज कोई बहाना मत बनाओ
मुझे फिर दीवाना मत बनाओ
क्या है चाल तुम्हारी समझ आती नहीं
नज़रों का तीर न चलाओ
फितरत बदल चुकी है कई बार तुम्हारी
नीयत बदल चुकी है कई बार तुम्हारी
होंगे न घायल हम ऐसे न मुस्कुराओ
आज कोई बहाना मत बनाओ
मुझे फिर दीवाना मत बनाओ।

~ प्रसनीत यादव ~
०६/०६/१४

जब मोहब्बत की पहली किताब लिखी थी
जज़्बातों की आंधी में
जाने कितनी ही बात लिखी थी
तू समझी थी बावला मगर सुन बावली
तड़प कर मेरी रूह ने उस दिन
स्याही से अपने दिल की आवाज़ लिखी थी
कोरे पन्नो में तेरी करामात लिखी थी
मैंने एक शुरुआत लिखी थी ।

~ प्रसनीत यादव ~
०६/०६/१४



  

Sunday, 1 June 2014

06/02/14

मेरी कलम में जो ये रोशनाई न होती
हमने ये ग़ज़ल यहाँ सुनाई न होती।

करीब होकर भी कितना दूर रहे तुम
थोड़ा समझ जाते तो बेवफाई ना होती।

सात सुरों में पिरोये हमने अपने ज़ज़्बात
इनके बिना बज रही शहनाई न होती।

खुश हूँ तुमने जलाकर जो ख़ाक किया
यूँ हमने दुनिया अलग बसाई न होती।

आज तन्हाईयाँ खुद पीछे भागती हैं मेरे
शौक में यूँ ही उम्र बितायी न होती।

बात बन जाती उस दिन खूब दिलकश
जो नज़रे झुकाये तुम लजाई न होती।

तुम साथ न देते ऐतबार ही कर लेते 
तड़पाने को तुम्हे क़सम उठाई न होती।

ये सारे लफ्ज़ ज़ेहन से निकले है प्रसनीत
बिन इनके एहसासों की दिलरुबाई न होती।  

~ प्रसनीत यादव ~
०६/०२/१४

Tuesday, 27 May 2014

बात-बेबात पर /28-05-14

मेरे इस अंजाम का इल्ज़ाम तुझ पर है
दिया था तूने कभी आज वही
ईनाम तुझ पर है
अपनी पसंद बता कौन सी कलम से
लिखूं ये इबादत
बीत रहे इक इक लम्हे का
पैग़ाम तुझ पर है
ये मेरे दिल का है एक टुकड़ा सुन ले
इसकी आह क़ुर्बान तुझ पर है <3

~ प्रसनीत ~
०५/२८/१४

एक मुद्दत से लिखा नहीं कुछ
आज लिखने की तमन्ना है
गुलाब की कोमल पंखुरियों सा
बनने की तमन्ना है
मुझे है पता वो मुझ पर यकीं नहीं करते
उनका यकीं बनने की तमन्ना है
इन ठंडी हवाओं की तरह
उनके संग संग बहने की तमन्ना है
मुझे आज बड़े दिनों बाद
उन्हें सुनने की तमन्ना है <3

~ प्रसनीत ~
०५/२८/१४

चोरी चोरी साज़िश न कर
रात बहुत हो गयी
देख मुझे अच्छा नहीं लगता
नैनो से आंसुओं की
बारिश न कर
ये ज़ालिम ज़माना
इल्ज़ाम लगाएगा
जो तुझको इस सूरत-ए -हाल में
पायेगा
ये इश्क़-विश्क की बातें करके
मुझको घायल न कर <3

~ प्रसनीत ~
०५/२८/१४

तुम्हे सुनते रहें हम ऐसे लम्हे की
तलाश करें 
खुद अपने आप से ही कितनी बात करें
क्या कहें अब आप सुनते नहीं
हम ख़्वाबों में आप से कितनी
मुलाकात करें
दिल ये भरता नहीं सच है साथी
हम चाहे जितनी बात करें
रात को दिन या दिन को रात करें
तुम्हे सुनते रहें हम ऐसे लम्हे की
तलाश करें <3

~ प्रसनीत ~
०५/२८/१४

मेरी आँख नम हो गयी,
गयी जब तू दूर 
ज़िन्दगी ख़त्म हो गयी
भरी थी कितनी स्याही
इस दिल में
गिरी जब आँखों से
जमीं पे दफ़न हो गयी
क्या मांगे उस खुदा से
हम खुद से जुदा जुदा से
हैं वीरानियाँ इतनी
खुशियां जो मिली तुझसे
वो सारी कफ़न हो गयीं
गयी जब तू दूर
ज़िन्दगी खत्म हो गयी <3

~ प्रसनीत ~
०५/२८/१४ 

आज लिख जाने को दिल करता है
कितना कुछ कह जाने को दिल करता है
तुम हो न साथ इसलिए
हर एक एहसास में भीग जाने को
दिल करता है
तुम इसे मेरे अंदर की रुमानियत समझो
या कुछ और
बस ऐसे ही इसी अंदाज़ में
जी जाने को दिल करता है
दूर रहकर ऐसे ही पास आने को दिल करता है
आज लिख जाने को दिल करता है <3

~ प्रसनीत ~
०५/२८/१४ 





Monday, 26 May 2014

बात-बेबात पर /26-05-14

किसी ने कभी तो जलाया होता
हंस कर खुद हमें दर्द जताया होगा
हम भी होते लहरों से लड़ने के आदी
जो मेरा ये दिल चोट खाया होता
मुलाकात मुलाकात में किसी ने तो
हमें मिटाया होता
पलकों से गिराया होता
आज हम भी होते इश्क़ के बाज़ीगर 
जो किसी ने सताया होता
सही रास्ता दिखाया होता।

~ प्रसनीत ~
०५/२६/१४

बात-बेबात पर अपनी बात कहता हूँ
मैं भी तो किसी के दिल में रहता हूँ
हूँ किसी का अरमान
बस उससे हूँ अनजान
बात-बेबात पर बस ऐसे ही
मुलाक़ात करता हूँ
मैं भी तो किसी का इंतज़ार रहता हूँ
हूँ कोई ख्याल मगर किसका
बस मेरा ये सवाल
बात बेबात पर क्या कुछ कहता हूँ
मैं भी छोटा सा दिल रखता हूँ
हूँ किसी का लम्हा जो हूँ तन्हा
बात-बेबात पर खुद को बेकरार करता हूँ
मैं भी तो किसी से प्यार करता हूँ ।

~ प्रसनीत ~
०५/२६/१४   

Sunday, 25 May 2014

मुझे आदत मत बनाना /25-05-14

मुझे आदत मत बनाओ
मैं दरिया हूँ बहता जाऊँगा
जाने कहाँ जाऊँगा
सागर में मिल
उसकी कितनी गहराई तक
जाने किस छोर तक
मुझे आदत मत बनाओ 
मैं तिनका हूँ
जाने कहाँ उड़ जाऊँगा
हवा के एक रुख से
या पैरों तले कुचला जाऊँगा
मुझे आदत मत बनाओ
मौसम हूँ
बदलता जाऊँगा
बस पल दो पल मिलता जाऊँगा
हँसता जाऊँगा खिलता जाऊँगा
मुझे आदत बनाना
ठीक नहीं
एक अनजान मुसाफ़िर सी
फितरत मेरी
साथ चलता जाऊँगा
बिछड़ता जाऊंगा
मुझे आदत मत बनाओ
मैं एक नशा
चढ़ता जाऊँगा
उतरता जाऊंगा
देखो ये ठीक नहीं दिल का
लगाना
सोंच लो
बेचैन तुम्हे करता जाऊँगा
मुझे आदत मत बनाओ
बस इतना कर दो
डरता हूँ 
नहीं चाहता जब दूर जाऊं
तुमको आंसूं दे जाऊं
तोड़ जाऊं खिलौने सा
कहता हूँ फिर
दिल को कितना भी बहलाना
मुझे आदत मत बनाना
मैं एक पंछी हूँ
जाने कहाँ मुड़ जाऊँगा
किस झुण्ड में मिल जाऊँगा
या कहीं खो जाऊँगा
नहीं मालूम खुद
मैं किधर जाऊँगा
बीच मझधार
या फिर किसी किनारे पर।

~ प्रसनीत यादव ~
०५/२५/१४
© PRASNEET YADAV 2014


Sunday, 15 September 2013

मेरा खोया चाँद

फिर किसी और दिन आना ऐ  चाँद आज दिल नहीं लगता ,
अन्धेरा रहने दो,
उसकी रौशनी याद आएगी जो तेरी रोशनी देखी मैंने ,
फिर किसी और दिन आना दिल लगाने आज दिल नहीं लगता ,
क्या कहूँ क्या नहीं ?
दर्द मेरा किसी और को न बताना बस ,
 जाऊं कहाँ यहीं रहने दो आज ,
 जाओ चले आये जहां  तुम ,
अकेला रहना मुझे
खिला करती थी मेरे होंठों पर मुस्कान ,
मुस्कुराने में आज दिल नहीं लगता ,
चाँद हो तुम दुनिया तुम्हे जाने ,
कितने आशिकों की तुम पहचान
क्या तुम्हे पता नहीं किस कदर टूटे मेरे अरमान ,
किया करता था तुमसे अपने चाँद की तुलना ,
तुम्हारी  चाँदनी में बैठकर ,
किया करता था कितनी सारी बातें ,
है कोई हिसाब बताओ ज़रा गुज़री कितनी रातें ,
क्या जानो तुम मेरी बेबसी ,
क्या जानो तुम मेरे उस चाँद के खो जाने का गम ,
जब वो चाँद नहीं ,
अन्धेरा  ही रहने दो फिर किसी और दिन आना ,
उस चाँद के बिना तुम भी अधूरे ,
उसके बिना आज दिल नहीं लगता।

~ प्रसनीत यादव ~

© PRASNEET YADAV