सर्दियों का मौसम मेरे लिए होता है खास और आपके लिए ??

सर्दियों का मौसम आते ही मन कहीं दूर निकल जाता है। वहां जहाँ से मैं होकर आया। अपने बचपन अपने स्कूल के दिनों की वो सर्दियाँ आज भी ख़ास हैं। वो चाय की चुस्कियां वो अलाव के पास बैठकर भुनी मूंगफली के दाने खाना। वो उन दिनों आलू द पराठे वो ब्रेड मक्खन की ताजगी , वो रात में हैलोजन की रोशनी में बैडमिंटन की तड़ातड़ कितना कुछ हो जाता है कहने को जब सर्दियाँ आती हैं। ठंडी हवाएँ सब कुछ बहा ले आती हैं अपने साथ। वो बल्ला जो उठता था तब तक उठा रहता था जब तक घर से बुलावा नहीं आता था उस पर भी हम अनसुना कर देते थे। वो मेरी जर्क बाल ज़रा कालर ऊपर कर लूँ फिर लिखता हूँ। वो संडे स्पेशल होता था आम दिनों से बिल्कुल अलग। रजाई की गरमाहट के साथ सुबह की रंगोली से लेकर शक्तिमान तक फिर शाम की दूरदर्शन की वो फिल्म खींच ले जाते हैं ये सारे लम्हे मुझे अपनी तरफ। खेलकूद और मस्ती के बीच स्कूल के लाजवाब दिन। स्कूल डेज बड़े प्यारे थे। स्कूल के वो सारे दोस्त वो टीचर सब कुछ याद है। हाँ टेबल याद करने में ज़रा लूज था हर शुक्रवार के वो श्रीवास्तव सर के डंडे सर्दियों में जब हथेली पर पड़ते थे उस पल मैं सिहर उठता था। मगर डंडे खाना टेबल याद करने से ज्यादा आसान समझता था। टेबल याद करने के मामले ढीठ था। कड़ाके की सर्दियों में जब पारा शून्य हो जाता था छुट्टी हो जाती थी कई दिनों तक स्कूल बंद हो जाते थे मानो पंख लग जाते थे। ऐसे में ज्यादा वक़्त किताबों से दूर खेलकूद और कुछ क्रिएटिव करने में ज्यादा बीतता था। उन दिनों शतरंज का भी चस्का हुआ करता था। फिर छुट्टियां ख़त्म होते ही थोड़ा मायूस से हो जाते थे।

सर्दियों का मौसम गर्म और रंगीन कपड़ों के लिए भी बहुत खास है। स्वेटर बुनने का प्रचलन भले ही आज कम हो गया हो मगर फिर भी ये पूरी तरह से बंद नहीं हुआ। बचपन में मैं और भाई मम्मा के हाथों के बुने स्वेटर पहनते थे जिसे वो बड़ी मेहनत से बनाती थीं। हर फंदे में सर्दियों की मिठास होती थी। ऊन के फंदों को जोड़ने का ये दिलचस्प खेल भी बड़ा सुकून देता था जब मम्मा और उनकी दो-चार सहेलियां बैठकर स्वेटर बुनती थीं उनके चेहरे पर मुस्कान झलकती थी और जल्दी से जल्दी स्वेटर पूरी करने की होड़ सी लगी होती थी। आज भले ही हम खरीदे हुए स्वेटर पहनना पसंद करते हों। मगर वो बचपन की स्वेटर हमारी खास हुआ करती थी। आप सबके पास भी होगी जरूर। इन रंगीन ऊनो से आप जो चाहे वो बना लो ये भी एक हुनर है। ये नहीं करना तो कोई बात नहीं अपने पॉकेट मनी के हिसाब से गर्म कपड़ों की खरीददारी करना भी मन को ख़ुशी देता है ये इन सर्दियों में आपको कलरफुल रखेंगे। हाँ अपने आस पास जरुरतमंदों को अपने पुराने गर्म कपड़े देंगे तो सर्दियों में उन्हें भी तकलीफ नहीं होगी उनकी सर्दियाँ भी अच्छी व्यतीत होंगी। आपको भी अच्छा लगेगा।

सर्दियों में ही शुरू होता है हम सबका चहेता नया साल। पुराना साल कुछ मीठी खट्टी यादों के साथ हम सबसे जुदा हो जाता है हमेशा के लिए और ढेर सारी यादें दे जाता है। नया साल नए उम्मीद की तरह आता है। नए साल की वो नयी सुबह स्पेशल सी होती है आज भी। कुछ खास तैयारियां हम करते हैं। मोबाइल, फेसबुक, वॉट्सऐप या मेल के जरिये भले ही हम आज शुभकामनाएं देते हों मगर वो ग्रीटिंग का सुनहरा दौर जब याद करते हैं तो उस अनोखे कार्ड की महक आज भी साँसों में घुल जाती है। बड़ी मेहनत करते थे हम उसमे ऐसे ही वो ख़ास नहीं है। बहुत सोंचकर लिखना पड़ता था। उन रंगीन कार्डों के साथ हमारे पल रंगीन हो जाते थे और सर्दियाँ गुलाबी। दिल की बातों को कार्ड पर लिखना या शेर -ओ-शायरी लिखकर किसी को भेंट करना अच्छा लगता था। नए साल को सेलीब्रेट करने का सबका तरीका अलग अलग जरूर होता है मगर ख़ुशी एक होती है। आप सबके जीवन में ये सर्दियां आलस्य दूर भगाए मौसम खुशनुमा बनाएं आप सर्दियों का भरपूर लुत्फ़ उठाये तंदरुस्त रहें और हाँ एक ग्रीटिंग जरूर बनाये अपने लिए ही सही या खरीद कर लाएं। हो सके तो महिलाये थोड़ा वक़्त निकालकर अपने बच्चों के लिए फ्रॉक ,हाइनेक ,कैप कुछ भी बनाएं। सर्दियाँ यादगार खुशनुमा हो जाएंगी। और हाँ एक बार फिर लिख रहा हूँ जरुरतमंदों को अपने पुराने गर्म कपड़े देंगे तो सर्दियों में उन्हें भी तकलीफ नहीं होगी उनकी सर्दियाँ भी अच्छी व्यतीत होंगी। आपको भी अच्छा लगेगा। जय हिन्द।
~ प्रसनीत यादव ~
१०/३१/१४
