Tuesday, 27 May 2014

बात-बेबात पर /28-05-14

मेरे इस अंजाम का इल्ज़ाम तुझ पर है
दिया था तूने कभी आज वही
ईनाम तुझ पर है
अपनी पसंद बता कौन सी कलम से
लिखूं ये इबादत
बीत रहे इक इक लम्हे का
पैग़ाम तुझ पर है
ये मेरे दिल का है एक टुकड़ा सुन ले
इसकी आह क़ुर्बान तुझ पर है <3

~ प्रसनीत ~
०५/२८/१४

एक मुद्दत से लिखा नहीं कुछ
आज लिखने की तमन्ना है
गुलाब की कोमल पंखुरियों सा
बनने की तमन्ना है
मुझे है पता वो मुझ पर यकीं नहीं करते
उनका यकीं बनने की तमन्ना है
इन ठंडी हवाओं की तरह
उनके संग संग बहने की तमन्ना है
मुझे आज बड़े दिनों बाद
उन्हें सुनने की तमन्ना है <3

~ प्रसनीत ~
०५/२८/१४

चोरी चोरी साज़िश न कर
रात बहुत हो गयी
देख मुझे अच्छा नहीं लगता
नैनो से आंसुओं की
बारिश न कर
ये ज़ालिम ज़माना
इल्ज़ाम लगाएगा
जो तुझको इस सूरत-ए -हाल में
पायेगा
ये इश्क़-विश्क की बातें करके
मुझको घायल न कर <3

~ प्रसनीत ~
०५/२८/१४

तुम्हे सुनते रहें हम ऐसे लम्हे की
तलाश करें 
खुद अपने आप से ही कितनी बात करें
क्या कहें अब आप सुनते नहीं
हम ख़्वाबों में आप से कितनी
मुलाकात करें
दिल ये भरता नहीं सच है साथी
हम चाहे जितनी बात करें
रात को दिन या दिन को रात करें
तुम्हे सुनते रहें हम ऐसे लम्हे की
तलाश करें <3

~ प्रसनीत ~
०५/२८/१४

मेरी आँख नम हो गयी,
गयी जब तू दूर 
ज़िन्दगी ख़त्म हो गयी
भरी थी कितनी स्याही
इस दिल में
गिरी जब आँखों से
जमीं पे दफ़न हो गयी
क्या मांगे उस खुदा से
हम खुद से जुदा जुदा से
हैं वीरानियाँ इतनी
खुशियां जो मिली तुझसे
वो सारी कफ़न हो गयीं
गयी जब तू दूर
ज़िन्दगी खत्म हो गयी <3

~ प्रसनीत ~
०५/२८/१४ 

आज लिख जाने को दिल करता है
कितना कुछ कह जाने को दिल करता है
तुम हो न साथ इसलिए
हर एक एहसास में भीग जाने को
दिल करता है
तुम इसे मेरे अंदर की रुमानियत समझो
या कुछ और
बस ऐसे ही इसी अंदाज़ में
जी जाने को दिल करता है
दूर रहकर ऐसे ही पास आने को दिल करता है
आज लिख जाने को दिल करता है <3

~ प्रसनीत ~
०५/२८/१४ 





Monday, 26 May 2014

बात-बेबात पर /26-05-14

किसी ने कभी तो जलाया होता
हंस कर खुद हमें दर्द जताया होगा
हम भी होते लहरों से लड़ने के आदी
जो मेरा ये दिल चोट खाया होता
मुलाकात मुलाकात में किसी ने तो
हमें मिटाया होता
पलकों से गिराया होता
आज हम भी होते इश्क़ के बाज़ीगर 
जो किसी ने सताया होता
सही रास्ता दिखाया होता।

~ प्रसनीत ~
०५/२६/१४

बात-बेबात पर अपनी बात कहता हूँ
मैं भी तो किसी के दिल में रहता हूँ
हूँ किसी का अरमान
बस उससे हूँ अनजान
बात-बेबात पर बस ऐसे ही
मुलाक़ात करता हूँ
मैं भी तो किसी का इंतज़ार रहता हूँ
हूँ कोई ख्याल मगर किसका
बस मेरा ये सवाल
बात बेबात पर क्या कुछ कहता हूँ
मैं भी छोटा सा दिल रखता हूँ
हूँ किसी का लम्हा जो हूँ तन्हा
बात-बेबात पर खुद को बेकरार करता हूँ
मैं भी तो किसी से प्यार करता हूँ ।

~ प्रसनीत ~
०५/२६/१४   

Sunday, 25 May 2014

मुझे आदत मत बनाना /25-05-14

मुझे आदत मत बनाओ
मैं दरिया हूँ बहता जाऊँगा
जाने कहाँ जाऊँगा
सागर में मिल
उसकी कितनी गहराई तक
जाने किस छोर तक
मुझे आदत मत बनाओ 
मैं तिनका हूँ
जाने कहाँ उड़ जाऊँगा
हवा के एक रुख से
या पैरों तले कुचला जाऊँगा
मुझे आदत मत बनाओ
मौसम हूँ
बदलता जाऊँगा
बस पल दो पल मिलता जाऊँगा
हँसता जाऊँगा खिलता जाऊँगा
मुझे आदत बनाना
ठीक नहीं
एक अनजान मुसाफ़िर सी
फितरत मेरी
साथ चलता जाऊँगा
बिछड़ता जाऊंगा
मुझे आदत मत बनाओ
मैं एक नशा
चढ़ता जाऊँगा
उतरता जाऊंगा
देखो ये ठीक नहीं दिल का
लगाना
सोंच लो
बेचैन तुम्हे करता जाऊँगा
मुझे आदत मत बनाओ
बस इतना कर दो
डरता हूँ 
नहीं चाहता जब दूर जाऊं
तुमको आंसूं दे जाऊं
तोड़ जाऊं खिलौने सा
कहता हूँ फिर
दिल को कितना भी बहलाना
मुझे आदत मत बनाना
मैं एक पंछी हूँ
जाने कहाँ मुड़ जाऊँगा
किस झुण्ड में मिल जाऊँगा
या कहीं खो जाऊँगा
नहीं मालूम खुद
मैं किधर जाऊँगा
बीच मझधार
या फिर किसी किनारे पर।

~ प्रसनीत यादव ~
०५/२५/१४
© PRASNEET YADAV 2014